Monday, October 18, 2010

नहीं बन पाते स्वैम राम कभी

सदियों से हम

दशहरे पर ,रावन बध करते है

राम के तीर चलते ही ,

पटाके छूटते है

कागज़ का विशाल पुतला

जमीन पर धरा शाई होता है

बच्चे ताली बजाते ,गुब्बारे खरीदते

खुश होते घर लोटते है

बच्चो की ख़ुशी देख बरे भी खुश होते है

लेकिन रावन नहीं मरता --

हर अगले साल--

अनेकानेक शीर्शो से

अट्टहास करती कर्कश आवाज़

मेरे कानो में परी है ...

आज हमारे जीवन ,समाज ,

और देश संसार में

राक्छासी प्रवार्तिया रस बस कर

अपने उत्कर्ष पर

मुस्कराती ख़री है

जिससे हमारे चेहरों की हवाइया उरी है

क्योकि हम सदियों से

राम जन्म तो मनाते है

लेकिन कोई राम जन्म ले सके ,

ऐसे दशरथ और कौशल्या नहीं बन पाते

राम को पूज कर भगवान् हम बनाते है

और स्वैम एक मर्यादित ,पुरुषार्थी

उत्तम इंसान नहीं बन पाते

नहीं बन पाते स्वैम राम कभी।

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