कल मंदिर बन जाएगा -----
निर्मल जल कल रव कल करता
बडता पथ पर सोंच रहा
मै जाऊ किस ठौर डगर तक
राह पथीरी स्वर करती
रुक जाओ यही पर
आगे कंटक बिछे पड़े
चुभने को शत प्रतिशत
जल मुस्काया -
वह बोला -मत समझो
मेरा तन छोटा है
और मन निर्मल
बूँद -बूँद मिल गई ,
धरा पर सागर सा लहरा जाएगा
और निर्मल मन के भीतर तो
एक स्पाती संकल्प छुपा है
ये माना सरकारी बांधो ने
मुझको रोका है
रुके अगर एक साथ कही पर
तो ये भी सबने देखा है
कि उगली हमने
कितनी बिजली ,कितनी ऊर्जा है
और टूटा जब ये बांध
धरा पर प्रलयंकारी दृश्य हुआ है
युं जो आया ,हमने उसको
आलिंगन कर गले लगाया
बड़ी -बड़ी चट्टानों को भी
अपने जैसा सरस बनाया
शूलों से भी कब है हमने बैर निभाया
उनको अपना रक्त पिला कर
उनमे हमने फूल खिलाया
रोक सका जग में न कोई राह हमारी
हमको ऐसा शंकर से वरदान मिला है
अपने रस्ते हमने खुद ही खोजे है
और स्वम हमने ही अपनी राह बनाई
हम प्रकर्ति है ,हमी ब्रह्म है
हमी सूक्चम ,हमी विस्तार
हमी धरा है हमी गगन है
हमी बूँद हम सागर ज्वार
इसी लिए कहता हूँ
पथ में मेरे न कोई आये
आया जो भी राह हमारी
लहरों से मसला जाएगा
मंत्री संत्री न्यायालय का भी
भ्रम मिट जाएगा
जहा बनी है आज बाबरी
कल मंदिर बन जाएगा
अशोक जौहरी