Tuesday, October 29, 2013

गीत बैरी हो गए 

गीत  बैरी हो गए 
शब्द मेरे थे मगर 
सब भाव तेरे हो गए 
दर्द कि लहरे उठी 
तो दिल मेरा रोया बहुत 
नयन मेरे थे मगर 
सब अश्क तेरे हो गए 
ज़िंदगी ने है दिया 
कुछ ऐसा सिला 
प्रीत तूने थी करी 
पर पीर मेरी हो गई 
गीत बैरी हो गए 
सब मीत बैरी हो गए 
                  जौहर। 
गांधी 

एक लाठी  डेढ़ हड्डी 
ढाई अक्छर सत्य के 
प्रेम  की धोती लपेटे 
भीड़ को संग -संग समेटे 
सोते भारत को जगा कर 
उसकी आज़ादी दिल कर 
तुम  कहाँ खो गए पितामह ?
जिन रास्तो को जोड़ के तुमने 
आज़ादी का चौक बनाया 
उसी चौक से आज ये राही 
उलटे पथ को लौट चुके है 
ओठों पर है नाम तुम्हारा 
मन में खुद को पूज रहे है 
ये कैसी पूजा है ?
और कैसे है हम पुजारी ?
हत्या और पूजा में भेद नहीं समझते 
पूजा करने को ,हत्या करना भी है 
कितनी बढ़ी लाचारी 
पहले तुमको गोली मारी 
फिर तुम्हारी तस्वीर  मढ़वा कर 
सरकारी विज्ञापन सी 
पूजा कर डाली। 
                 अशोक जौहरी