Saturday, November 9, 2013

स्वार्थ की आँधी 

स्वार्थ की आंधी में देश खड़ा मौन क्यों 
आदमी ने आदमी को इस कदर बांटा 
हिलमिल कर रह रहा सदियों से भारती 
कुर्सी पर बैठे जो उनका क्या घाटा 
परदादे जिनके आपस में  सगे भाई थे 
उनके ही बच्चो में नहीं कोई नाता है 
ये मेरा अल्ला ,  ये मेरा ईश्वर  है 
टुकड़ो में बंट गया विश्व का विधाता 
कलिओं  को चटखना     

जीवन है अगर अपना जीना तो पढ़ेगा 
रो -रो के ही हसिये मगर हसना तो पढ़ेगा 
 अँधेरी सूनी सी है  राहें औ तूफानी  हवाए 
मंज़िल पे पहुचना है तो चलना तो पढ़ेगा 
जब उम्र के योवन में तूफ़ान सा आए 
कश्ती को किनारे कही करना तो पढ़ेगा 
जब दर्द कि लहरे हो तारो सी कैसे सांसे 
तब शब्द को गीतो में ढलना तो पढ़ेगा 
जब रूठा हुआ यार आ के द्वार थपथपाए 
मन में पढ़ी गांठो को खुलना तो पढ़ेगा 
जब  कलिओ को हवा प्यार कि सहलाए 
तब  कलिओ को  चटखना   तो पढ़ेगा