Wednesday, November 10, 2010

जिंदगी के माईने

जब भी हमने चाहा समझे जिंदगी के माईने
ये हमें हर दम लगी बेवजह बेमाईने

कितनी हसरत से खुदा ने आदमी पैदा किया
आदमी ने आदमी को कर दिया बेमाईने

हर धर्म ने ये कहा , इंसा करे इंसा से प्यार
पर खुदा के बन्दों ने सब कर दियाबेमाईने

रोक दो विज्ञानं की सारी प्रगति है बेफिजूल
पलक झपकते ही मिटे दुनिया, प्रगति बेमाईने

आज इंसा के कदम छूते सदी इकीसवी
आइये हम अब तो समझे जिंदगी के माईने

Sunday, October 31, 2010

एक और कदम

जल में अध् डूबे हम तुम

बाहों में बाहे लिपटी है

आँखों में मदिरा है तेरे

और गेसू में शबनम

फिर मेरे लव क्यों प्यासे है

क्यों जलता है तन मन

आओ
प्रिये इन बहकी राहो पर

लेले हम आज एक और कदम


आज बहुत दिन बाद

आज बहुत दिन बाद

तुम्हारी याद फिर आई

आज बहुत दिन बाद

हमारी आँख भर आई

कैसी है याद तुम्हारी

कैसे है मेरे आंसू

रोते-रोते भी हमको

आज हंसी आई ..


मीत

मिला तुम्हे जो मीत
न बिछुरे,
चाहे बुझ जाए हर दीप ।
गगन में
काले बादल उमर्णे
और घिर आए तम शीत ।
व्यथा में तू उलझा हो ,
होती हो हर पीर ,
किन्तु कभी जब
बिजली कढ़के ,

और समीप की प्रथ्वी उभढ़े ,
तो अपने को प् एकाकी ,
न हो तू भयभीत ,
कही पर दिखे तुम्हारा मीत ।
मिला तुम्हे जो मीत न बिचुढ़े....

Monday, October 18, 2010

नहीं बन पाते स्वैम राम कभी

सदियों से हम

दशहरे पर ,रावन बध करते है

राम के तीर चलते ही ,

पटाके छूटते है

कागज़ का विशाल पुतला

जमीन पर धरा शाई होता है

बच्चे ताली बजाते ,गुब्बारे खरीदते

खुश होते घर लोटते है

बच्चो की ख़ुशी देख बरे भी खुश होते है

लेकिन रावन नहीं मरता --

हर अगले साल--

अनेकानेक शीर्शो से

अट्टहास करती कर्कश आवाज़

मेरे कानो में परी है ...

आज हमारे जीवन ,समाज ,

और देश संसार में

राक्छासी प्रवार्तिया रस बस कर

अपने उत्कर्ष पर

मुस्कराती ख़री है

जिससे हमारे चेहरों की हवाइया उरी है

क्योकि हम सदियों से

राम जन्म तो मनाते है

लेकिन कोई राम जन्म ले सके ,

ऐसे दशरथ और कौशल्या नहीं बन पाते

राम को पूज कर भगवान् हम बनाते है

और स्वैम एक मर्यादित ,पुरुषार्थी

उत्तम इंसान नहीं बन पाते

नहीं बन पाते स्वैम राम कभी।

तू साहस कर ..--

तू साहस कर एक कदम का
आगे राहे मिल जाए गी
अपने हात बढ़ा तू आगे
आगे बाहे मिल जाए गी
एकाकी तू चल तो पथ पे
आगे साथी मिल जाए गे
जीवन गति है ,नहीं ठहरना
जीवन है कुछ करते रहना
पथ पे अपने बढ़ते रहना
जीवन में निराश मत होना
छा जाए यदि अंधकार तो
साहस से कदमो को रखना
साहस के एक -एक कदम पर
चंदा तारे बिछ जाए गे
मन में आशा दीप जले तो
नभ पे सूरज खिल जाए गे

Friday, October 15, 2010

जीवन की गाढ़ी

चलती है ,जीवन की गाढ़ी

कभी अगाढ़ी,कभी पिछाड़ी

मत उदास हो

चाहे आंए

जीवन में विपदाए भारी ।

ये जीवन तो खेल है साथी ,

सुख दुःख का ये मेल है साथी

दुःख का दर्द तू आज भोग ले

कल सुख का प्रभात निश्चित है ।

आज शूल के पथ पर चल तू

कल राहो पर फूल खिले गे ।

जीवन का ये मर्म समझ तू

दुःख के मोल भोग सुख को तू

Tuesday, October 12, 2010

और खर्च न होती

सुबह --


एक और दिन जी लेने की ख़ुशी

दोपहर --

कमर तोर मजदूरी

शाम--

राहत और चाय की चुस्की

रात --

म्रत्यु के पालने में

टूट गए स्वपन सी

एक झपकी

खीज - खीज कर,

राह गया हूँ

कभी तो ऐसा वक़्त होता

जब क़र्ज़ ली हुई साँसे

और खर्च न होती.

ममता की डोर

ममता की जो डोर बंधी ,

मेरे तेरे बीच सखी ,

टूट न जाए ।

अंधर आये,

तूफानों में जग घिर जाए ,

अम्बर कांपे ,

धरती डोले,

मेरी तेरी प्रीत न टूटे .

एक तेरा नाम

मेरा जीवन ,तुमसे बिचुरा

जैसे सूनी शाम ।

मेरा योवन ,तुम बिन,

जैसे प्यासा जाम ।

यादो के तरप भरे

आंसू ने रखा

अधरों पे मेरे

एक तेरा नाम.

आंसू बन जाए

अपनी हमदर्द बाहों में

मुझे घेर कर

प्यारी सपनीली आँखों से

ऐसे न देखो

की मेरे दिल का दर्द

पिघल कर

आंसू बन जाए

प्यार बुजदिल कहलाए .

Monday, October 11, 2010

जब तब

जब -तब बस युही

मै उदास होता हूँ

चुप- चुप

बिन आंसू

मन ही मन

रोता हु ...

अभी -अभी

मस्जिद की गुम्बद के पीछे

सूरज

जब छितिज में डूबा है !

तो मैंने ,उसे डूबते हुए देखा है !

ठीक विसे ही

जैसे की तुम्हे

इस दुनिया की भीर में

खोते हुए देखा है

सबेरे -सबेरे

तुम सबेरे -सबेरे

मुझे ऐसी लगी

जैसे__

मेरी सारी खुशिया

सिमट कर

तुम्हारी आँखों में

हँस रही हो

मुस्कराना चाहता हूँ

तुमने अपने,अद्रश्य ,डरपोक हातो से

उदासीन साढ़ी के

मौन पल्लू से

पोछ दी है

मेरे चेहरे की मुस्कान!

चलो उठो

थोरा साहस करो

यह साढ़ी बदल डालो

मै मुस्कराना चाहता हूँ


कलि

यह गुलाब की कलि,

जो मैंने अभी ,

तुम्हारी क्यारी से तोरी है

बढ़ी शोख ,बढ़ी हसीन है!


जैसे__

तुम्हारी तस्वीर है !

Sunday, October 10, 2010

ये शाम

कितनी महकी और बहकी हुई है ये शाम

आज तो पी लो ,पियो ,पीते रहो बस जाम


कल न जाने फिर कहा हो हम ,कहा हो शाम

कल न जाने फिर ये महफ़िल भी मिले न जाम

देखो तारे पी रहे है चांदनी के जाम

आज तो जी लो ,जियो ,जीते रहो ये शाम


चांदनी भीगी नहाई,ख्वाब सी ये शाम

कर रही मदहोश सबको बिन पिए ही जाम

आज बहुत दिन बाद----

आज बहुत दिन बाद

तुम्हारी याद फिर आई

आज बहुत दिन बाद

हमारी आँख भर आई

कैसी है ,याद तुम्हारी ?

कैसे है ,मेरे आंसू ?

रोते रोते भी आज

हसी आई ॥

आज बहुत दिन बाद ...

Wednesday, October 6, 2010

मन भटकता है ..

मन भटकता है अकेले इस भरे पुरे जंहा में
है कहा वह ठाव मुझको मिले पल भर छाव
धुप की तपती दुपहरी सा जला मन
ढूढता हर ओर जैसे प्यार की एक छांव
राह जितनी चली ,दूर उतने आ गए है
और चलने को उठते नहीं अब पाओ
शहर में भटके मुसाफिर सा थका मन
हो व्यथित फिर खोजता है आज अपना गाओ।

प्रणय गीत..

जब से बिछुरे प्राण दीप बाती से हम तुम
यो लगता है यह जीवन एक विरह गीत है
धुँआ धुँआ सी सुबह ,शाम हर लगे कुहासी
बिना तुम्हारे मावस है हर पूरनमासी
पर आमावसी इन घरियो में मेरे प्रीतम
महा मिलन की स्मृति एक प्रणय गीत है
रंग गया है आसमान सिंधूरी पत्ते सा
और आदमी है उदास बेवा के मत्थे सा
रीत गया दीप मगर बाती अध् जली है
राह अभी चलने को शेष बहूत पढ़ी है
सो गया है चित्रकार आसमान रंग कर के
आदमी की मुस्कान रंगने को पढ़ी है .
अनपढ़,  गरीबी,  बीमारी , भुकमरी
गाँव -गाँव ,गली -गली बरगद सी खड़ी है
समितिया ,आयोग ,राहत  ये बाँट रहे
कुर्सी पर नज़र इनकी कील सी गड़ी है

                                          अशोक जौहरी