मैं भटकता ही रहा_____
मैं भटकता ही रहा त ज़िंदगी
प्यास मन की क्यूँ मेरी बुझती नहीं
उम्र रेगिस्तान सी लगने लगी है
दूर तक छाया कोई दिखती नहीं
ज़िंदगी के रास्ते तपती हुई चट्टान पे
और ऊपर आग अम्बर हो रहा है
चलते -चलते थक चूका मन
राह बाकी है अभी और पॉँव रुकते ही नहीं
जोहर
मैं भटकता ही रहा त ज़िंदगी
प्यास मन की क्यूँ मेरी बुझती नहीं
उम्र रेगिस्तान सी लगने लगी है
दूर तक छाया कोई दिखती नहीं
ज़िंदगी के रास्ते तपती हुई चट्टान पे
और ऊपर आग अम्बर हो रहा है
चलते -चलते थक चूका मन
राह बाकी है अभी और पॉँव रुकते ही नहीं
जोहर